सोमवार, 20 सितंबर 2010

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पच्चीस

शंकाओं के घेरे में
डूबा वक्त अंधेरे में

आडम्बर की शह्तीरें
घर में तेरे, घर में मेरे

शक- शुबहात बसे आकर
दिल के रिक्त बसरे में

उजियारों की बात करें
हम इन घने अंधेरे में

ढूंढें कोई चिंगारी
ठण्डी राख के घेरे में

मंज़र रंगीं सपनों का
होता काश चितेरे में

चिह्न निशा के अब भी 'यकीन'
क्यूं बाकी है सवेरे में
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छ्ब्बीस

हम अंधेरे में चरागों को जला देते हैं
हम पे इल्ज़ाम है हम आग लगा देते हैं

कल को खुर्शीद भी निकलेगा, सहर भी होगी
शब के सौदागरों ! हम इतना जता देते हैं

क्या ये कम है कि वो गुलशन पे गिरा कर बिजली
देख कर खाके - चमन आंसू बहा देते है

बीहडों में से गुज़रते है मुसलसल जो कदम
चलते - चलते वो वहां राह बना देते हैं

जड हुए मील के पत्थर ये बजा है लेकिन
चलने वालों को ये मंज़िल का पता देते हैं

अधखिले फ़ूलों को रस्ते पे बिछा कर वो यूं
जाने किस जुर्म की कलियों को सज़ा देते हैं

अब गुनह्गार वो ठहराऎं तो ठहाराऎं मुझे
मेरे अशआर शरारों को हवा देते हैं

एक - इक जुगनू इकट्ठा किया करते हैं 'यकीन'
रोशनी कर के रहेंगे ये बता देते हैं
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सत्ताईस

मेरी प्यास वो यूं बुझाने चले हैं
समुन्दर का पानी पिलाने चले हैं

उन्हें कैसे महबूब अपना समझ लें
निवाला जो मुंह का छुडाने चले हैं

जिन्हें ज़िंदगी ने निरन्तर रुलाया
वो दिवाने जग को हंसाने चले हैं

मज़ाहिब के हल यूं दिलों पे चला कर
वो अब फ़स्ल कैसी उगाने चले हैं

उजड ही गई हम गरीबों की बस्ती
नगर खूबसूरत बनाने चले हैं

परिन्दों के पर नोच कर अब दरिन्दे
उडानों के सपने दिखाने चले हैं

ज़माने अक्सर भुलाया है उन को
ज़माने के जिन से फ़साने चले हैं

हुए बदगुमां क्यूं 'यकीन' आज इतने
हमें वो हमीं से लडाने चले हैं
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अट्ठाईस

कभी दोस्ती के सितम देखते हैं
कभी दुश्मनी के करम देखते हैं

कोई चहरा नूरे - मसर्रत से रोशन
किसी पर हज़ारों अलम देखते हैं

अगर सच कहा हम ने तुम रो पडोगे
न पूछों कि हम कितने गम देखते हैं

गरज़ उउ की देखी, मदद करना देखा
और अब टूटता हर भरम देखते हैं

ज़ुबां खोलता है यहां कौन देखें
हकीकत में कितना है दम देखते हैं

उन्हें हर सफ़र में भटकना पडा है
जो नक्शा न नक्शे - कदम देखते हैं

यूं ही ताका - झांकी तो आदत नहीं है
मगर इक नज़र कम से कम देखते हैं

थी ज़िंदादिली जिन की फ़ित्रत में यारों !
'यकीन' उन की आंखॊं को नम देखते हैं
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उन्न्तीस

हाले - दिल सब को सुनाने आ गये
खुद मज़ाक अपना उडाने आ गये

फ़ूंक दी बीमाशुदा दूकान खुद
फ़िर रपट थाने लिखाने आ गये

मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फ़िर शगुन ले के दिवाने आ गये

खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गये

तेल की लाइन से खाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गये

प्रिंसीपल जी लेडी टीचर को लिये
देखिए पिक्चर दिखाने आ गये

हांकिया ले कर पढाकू छोकरे
मास्टर जी को पढाने आ गये

घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गये

कांख में ले कर पडौसन को जनाब
मौज मेले में मनाने आ गये

बीवी सुन्दर मिल गई तो घर पे लोग
खैरियत के ही बहाने आ गये

शोख चितकबरी गज़ल ले कर 'यकीन'
तितलियों के दिल जलाने आ गये
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तीस

आसमां के डराये हुए हैं
रोशनी के जलाये हुए हैं

दरिया, परबत, सितारे, शजर सब
किस कदर खौफ़ खाये हुए हैं

आग से है हवाओं को दहशत
हम यूं दीपक बुझाये हुए हैं

बेबसी का है आलम अगर्चे
चहरे सब तमतमाये हुए हैं

कब बदलता है परिंदे से मंज़र
बस निगाहें गडाये हुए हैं

आजकल तो 'यकीन' अपना सर हम
सरफ़िरों में खफ़ाये हुए हैं

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इकतीस

अपने - अपने मोर्चे डट कर संभालें दोस्तों
इस चमन को हम उजडने से बचा लें दोस्तों

गर कोई मतभेद भी है रास्तों के दरमियां
कोई साझी राह मिल्जुल कर निकालें दोस्तों

कुछ गलतफ़हमी में उन को रूठ कर जाने न दें
बढ के आगे अपने प्यारों को मना लें दोस्तों

सल्तनत ही डोल जाये जिन के दम से ज़ुल्म की
शब्द ऎसे भी हवाओं में उछालें दोस्तों

बस्तियों को खाक कर दे बर्क इस से पेशतर
बस्तियों पे हम कोई बक्तर चढा लें दोस्तों

जो अलमबरदारी - ए- अम्नो - अमां में मिट गए
गम ' यकीन' ऎसे जियालों का भी गा लें दोस्तों
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बत्तीस

है कहानी ये तेरी सच को छुपाने वाली
बात कर दोस्त कोई दिल को दुखाने वाली

मार खा कर हमें इतना तो समझ में आया
उस ने क्या चाल चली हम को हराने वाली

आज दुनिया की तबाही पे है दुनिया तैयार
कैसी दुनिया है ये खुद को ही मिटाने वाली

बंदरों को तो नचा लेते है लाठी अक्सर
अब कोई शै हो मदारी को नचाने वाली

वो अदाकारा है, सुंदर है, मगर सुन बेटे
लोग कहते हैं उसे नाचने- गाने वाली

जैसे मासूम शरारत हो किसी बच्चे की
उस की हर बात थी यूं दिल को रिझाने वाली

कोई इस दर्जा करीब आया कि अब दिल को 'यकीन'
याद उस की न कभी छोड के जाने वाली

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