पीर पराई नें कुण जाणै


                  १.

घणीं अंधारी छै या रात, पण हुयौ काईं
बगण गई छै बणी बात, पण हुयौ काईं

छै चारू मे’र तरक्क्यां का खूब हंगामा
अठी छै दुख्यां की सौगात, पण हुयौ काईं

तसाया खेतां - खलाणां पे आग का औसाण
समन्दर पे छै बरसात, पण हुयौ काईं

जमारा ! थारा छलां की बिसात पे य्हां तो
हुई छै म्हां की सदा मात, पण हुयौ काईं

मटर ई ग्यौ छै वा अरमानां कौ हरयौ मांडौ
लुटी छै सपना की सौगात, पण हुयौ काईं

म्हानै ई मीच’र आख्यां ’यकीन’ वां पे करयौ
म्हं सूं ई वां नें करी घात, पण हुयौ काईं

                 २.      

न्है तू ही सुधरयौ न्हं म्हूं अ’र यो सारौ बीत बी ग्यौ
जमाना ! थारी फ़कर में जमारौ  बीत बी ग्यौ

कठी बी झांक ल्यो काळौ ई काळौ आवै नजर
कठी बी सुण ल्यौ यो रोळो, अंधारौ बीत बी ग्यौ

तसाया पंछी कळ्पता फ़रै छै जंगल मांय
बंध्यां छै ढोर खणौटा पे, चारौ बीत बी ग्यौ

न्हं  फ़र मुळकती, मिरग - सी उछळती खेतां में
यो जाण ल्यै कै लडकपन तो थारौ बीत बी ग्यौ

कस्यां बणाऊं खळकणौ, मनाऊं टाबर नें
अठी तो सडकां छै डामर की, गारौ बीत बी ग्यौ

घणा सह्या छै जुलम, अब तो उठ रे साथिडा
बता दयां वां नें, सबर थारौ- म्हारौ बीत बी ग्यौ

’यकीन’ जागती राखौ या जोत साहित की
मिनखपणों तो चुक्यौ, भाईचरौ बीत बी ग्यौ




थां नें म्हारौ घर बळा द्यौ, या घणी चोखी करी
सगळौ झंझट ई मटा द्यौ, या घणी चोखी करी

बाळ ई देतौ यो सूखा रूखडा नें तावडौ
थां नें सुरज ई छुपा द्यौ, या घणी चोखी करी

पा के सुपणां में खुश्यां म्हूं सब  दुखां सूं दूर छौ
थां नें सूता सूं जगा द्यौ, या घणी चोखी करी

सुर्ग रच ल्यौ खुद के लेखे अ’र यौ म्हां के वास्ते
नर्क धरती पे बणा द्यौ, या घणी चोखी करी

रात स्यळौ ले ई ग्यौ वा भूख का बीमार नै
सारा झगडां सू छुडा द्यौ, या घणी चोखी करी

काणै काईं गुल खिलातौ बावळी छोरी कौ पेट
मुर्गौ तन्दूरी बणा द्यौ, या घणी चोखी करी

जहैर भर द्यौ दुस्मनाई को कौ’र प्रेम - अमरित "यकीन"
मनख्यां का मन सूं उठा द्यौ, या घणी चोखी करी

४.

पीसा के सामै काईं न्हं इज्जत गरीब की
कीडा - मकोडा - सी छै अठी गत गरीब की

यां सी बच"र कहडै तो कहडै बी कस्यां गरीब
ऊभी छै ठाम- ठाम पे आफ़त गरीब की

कानून कांईं बी बणै, सेठां की खैर छै
आवै कस्यौ बी राज, मुसीबत गरीब की

बरखां की नांईं मौत की न्हाळै छै नत यो बाट
मुर्दां सूं बी खराब छै हालत गरीब की

सोचै तो कांईं सोचै, करै तो करै कांईं
माथै न्हं पागडी बची न्हं छत गरीब की

डूब्यौ करज- मरज में छै नख सूं यो चोटी तांईं
अब कहै " यकीन" कांईं छै कीमत गरीब की