हाथ थामा तो छोड जाने लगा
उस की आंखों में कुछ चमक आई
उस का बेटा भी अब कमाने लगा
वो न आया तो फ़िर खयाल उस का
ज़हन में बार-बार आने लगा
धडकनें उस का नाम रटने लगी
दिल कभी जब उसे भुलाने लगा
वो नही था तो उस का चहरा हसीं
सामने आ के मुस्कुराने लगा
मुंतज़िर दीद की थकी आंखें
नींद का भी खुमार छाने लगा
उस से रुख्सत का वक्त आया तो
दिल मेरा बैठ-बैठ जाने लगा
नींद आने लगी ज़रा तो "यकीन"
ख्वाब में आ के वो सताने लगा
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