शनिवार, 7 अगस्त 2010

सात





जिस को चाहा वही सताने लगा
हाथ थामा तो छोड  जाने लगा

उस की आंखों में कुछ चमक आई
उस का बेटा भी अब कमाने लगा

वो न आया तो फ़िर खयाल उस का
ज़हन में बार-बार आने लगा


धडकनें उस का नाम रटने लगी
दिल कभी जब उसे भुलाने लगा

वो नही था तो उस का चहरा हसीं
सामने आ के मुस्कुराने लगा

मुंतज़िर दीद की थकी आंखें
नींद का भी खुमार छाने लगा

उस से रुख्सत का वक्त आया तो
दिल मेरा बैठ-बैठ जाने लगा

नींद आने लगी ज़रा तो "यकीन"
ख्वाब में आ के वो सताने लगा
                           --------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें