जो गया वो फ़िर न आया लौट कर
आदमी- दर आदमी देखा किए
आदमी आया नही कोई नज़र
बुदबुदाया शहर में आ कर फ़कीर
क्यूं चला आया में जंगल छोड कर
कौन देगा अब उसे मेरा पता
कैसे मैं लाऊंगा उस को ढूंढ कर
फ़िर मुरव्वत में किया उस पर "यकीन"
फ़िर समझ बैठा हूं उस को मोतबर
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ज़हां भर में हमें बौना बनावे धर्म का चक्कर
हैं इंसां, हिंदू, मुस्लिम, सिख बतावे धर्म का चक्कर
ये कैसा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का है झगडा
करोडों को हज़ारों में गिनावे धर्म का चक्कर
चमन में फ़ूल खुशियों के खिलाने की जगह लोगों
बुलों को खून के आंसू रुलावे धर्म का चक्कर
कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को
सबक नफ़रत का लेकिन अब पढावे धर्म का चक्कर
सियासत की बिछी शतरंज के मुहरे समझ हम को
जिधर मर्जी उठावे या बिठावे धर्म का चक्कर
यकीनन कुर्सियां हिलने लगेंगी ज़ालिमों की फ़िर
किसी भी तौर से बस टूट जावे धर्म का चक्कर
मज़ाहिब करते हैं ज़ालिम हुकूमत की तरफ़दारी
निज़ामत ज़ुल्म की अक्सर बचावे धर्म का चक्कर
निकलने ही नहीं देता जहालत के अंधेरे से
"यकीन" ऎसा अजब चक्कर चलावे धर्म का चक्कर
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निचुडा-निचुडा और बुझा सा मेरा शहर
दहशत के साये में पलता मेरा शहर
अपने घरों में दुबका- छिपका मेरा शहर
आतंकी चादर में लिपटा मेरा शहर
झुग्गी में, फ़ुट्पाथ पे जीता मेरा शहर
ढोता सारे शहर का बोझा मेरा शहर
गलियों में अठखेली करता अंधियारा
चौराहों पे जगमग करता मेरा शहर
खोके में पनवाडी बैठा चिंतित है
हो गया "बी. टू." सुन्दर होगा मेरा शहर
दिल का दुखी आक्रोश मे जलता पाया है
जब भी देखा जिधर भी देखा मेरा शहर
टी.वी. से न चिपक जब पाये लोग "यकीन'
'ज़ी', 'केबल', 'स्टार' ने जकडा मेरा शहर
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इन्सां से जिन्हें प्यार न भगवन का कोई डर
वो खुद को बताते हैं पयम्बर कभी रहबर
धीरज की तो सीमा है कोई देख सितमगर
कब तक ये सुनेंगे कि अभी धीर ज़रा धर
सहरा की तरह तपने लगे फ़ूलों के दिल भी
बुलबुल भी चहकते नहीं अब शाखे-शज़र पर
ये शहर दुनाली पे टंका है तो टंका है
मर जाएं तो मर जाएं रहेंगे तो यहीं पर
किस हुस्ने-फ़रोज़ां पे किया नाज़ भी तुम ने
जो साथ छुडा लेता है दो दिन में अधिकतर
जा अब है तू परवाज़ को आज़ाद परिन्दे
जा अब कि तेरे नोच लिए उस ने सभी पर
आतंक की चादर में छुपेंगे न सितम और
इक रोज़ पुकारेंगे "यकीन" इस से उबर कर
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उन्नीस
इन्सां के दिल से क्यूं भला इन्सान मर गया
दर्यादिलों के कौन ये दिल तंग कर कर गया
कैसे गवारा हो उन्हें फ़िरकों में दोस्ती
बलवा तो लूटमार को आसान कर गया
क्यूं अब लकीरें पीटते हैं बावले-से हम
वो तो लकीर खींच कर जाने किधर गया
कल रात मैनें ख्वाब में इक सांप छू लिया
आंखें खुली तो रेशमी धागे से डर गया
दिल में चुभेगा आइना खंज़र-सा, तीर-सा
गर इस में अक्स हू-ब-हू तेरा उतर गया
कुछ तो अब हाथ-पांव को हिलना सिखाइये
फ़िर क्या बचेगा पानी जो सर से गुज़र गया
हर आदमी पे आज भी करते हैं हम "यकीन"
बस हम न सुधरे, सारा ज़माना सुधर गया
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गज़लों पे कर न पाऎंगे थोडा भी गौर क्या
बिल्कुल ही हम को आप ने समझा है ढोर क्या
जो जी में आए सोच लो तुम मेरे वास्ते
आखिर किसी के सोच पे रख्खूं मैं ज़ोर क्या
कर डाला कत्ल बाप को भाई से लट्ठ्मार
बीवी जला के मार दी, आया है दौर क्या
फ़ैकों उछालो शौक से या मारो ठोकरें
टूटा हुआ ये दिल भला टूटेगा और क्या
ताला ज़ुबां पे कोई बज़ाहिर नहीं "यकीन"
लेकिन खिलाफ़ ज़ुल्म के उठता है शोर क्या
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हर बार सब ने माना कि बेकार हो गया
लेकिन फ़साद शहर में हर बार हो गया
ये मज़हबी जुनून है या कोई बाइरस
जिस का ये शहर पल में गिरिफ़्तार हो गया
रंगीन फ़ूल भेंट को अब लाये हैं जनाब
अब जब वो देखने से भी लाचार हो गया
दुनिया लगी है नाचने दौलत के मंच पर
सौदागरों- सा हर कोई किरदार हो गया
क्या-क्या न जाने और भी सहना पडेगा अब
सर को उठा के जीना तो दुश्वार हो गया
कितने निज़ाम ज़ुल्म के हम ने मिटा दिए
अब, ज़ुल्म सहना क्यूं हमें स्वीकार हो गया
ये राजनीति बाज़ न आयेगी इस तरह
इस का "यकीन" खून ही बीमार हो गया
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दिल के ज़ख्मों की तुम दवा करना
हक मुहब्बत का कुछ अदा करना
रब्त तुझ से इसी बहाने सही
मुझ को दुश्मन ही कह दिया कर ना
आने वाले की फ़िक्र लाज़िम है
जो गया उस का ज़िक्र क्या करना
हाले- दिल पूछने से क्या हासिल
हो सके तो कभी वफ़ा करना
रूठ जाये वो, इस की मर्ज़ी है
फ़र्ज़ मेरा मुझे अदा करना
दूरियां अब सही नहीं जाती
कोई मिलने का रास्ता करना
इक यही आरज़ू है अब तो "यकीन"
कुछ मुहब्बत में गम अता करना
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जाने कैसी चली थीं यहां आंधियां
खो गये रास्ते, बढ गयी दूरियां
ये भी मंज़र दिखाया हमें राम ने
नौ- नौ आंसू बहाती है अंगनाइयां
बीते मौसम में ये कैसी बारिश हुई
बह गये प्यार के गांव और ढानियां
होता होगा कहीं ज़श्न, इस जा से तो अब
मातमी धुन बजाती है शनाइयां
धार के साथ क्यूं आप बहने लगे
याद कीजे सिखाती हैं क्या मछलियां
लूट, दंगे, गबन, कत्ल, आतशज़नी
कितने करतब दिखाती है ये कुर्सियां
एक- दूजे पे रखिये भरोसा "यकीन"
दुश्मनों की तो उड जाऎंगी धज्जियां
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शंकाओं के घेरे में
डूबा वक्त अंधेरे में
आडम्बर की शह्तीरें
घर में तेरे, घर में मेरे
शक- शुबहात बसे आकर
दिल के रिक्त बसरे में
उजियारों की बात करें
हम इन घने अंधेरे में
ढूंढें कोई चिंगारी
ठण्डी राख के घेरे में
मंज़र रंगीं सपनों का
होता काश चितेरे में
चिह्न निशा के अब भी 'यकीन'
क्यूं बाकी है सवेरे में
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छ्ब्बीस
हम अंधेरे में चरागों को जला देते हैं
हम पे इल्ज़ाम है हम आग लगा देते हैं
कल को खुर्शीद भी निकलेगा, सहर भी होगी
शब के सौदागरों ! हम इतना जता देते हैं
क्या ये कम है कि वो गुलशन पे गिरा कर बिजली
देख कर खाके - चमन आंसू बहा देते है
बीहडों में से गुज़रते है मुसलसल जो कदम
चलते - चलते वो वहां राह बना देते हैं
जड हुए मील के पत्थर ये बजा है लेकिन
चलने वालों को ये मंज़िल का पता देते हैं
अधखिले फ़ूलों को रस्ते पे बिछा कर वो यूं
जाने किस जुर्म की कलियों को सज़ा देते हैं
अब गुनह्गार वो ठहराऎं तो ठहाराऎं मुझे
मेरे अशआर शरारों को हवा देते हैं
एक - इक जुगनू इकट्ठा किया करते हैं 'यकीन'
रोशनी कर के रहेंगे ये बता देते हैं
---
मेरी प्यास वो यूं बुझाने चले हैं
समुन्दर का पानी पिलाने चले हैं
उन्हें कैसे महबूब अपना समझ लें
निवाला जो मुंह का छुडाने चले हैं
जिन्हें ज़िंदगी ने निरन्तर रुलाया
वो दिवाने जग को हंसाने चले हैं
मज़ाहिब के हल यूं दिलों पे चला कर
वो अब फ़स्ल कैसी उगाने चले हैं
उजड ही गई हम गरीबों की बस्ती
नगर खूबसूरत बनाने चले हैं
परिन्दों के पर नोच कर अब दरिन्दे
उडानों के सपने दिखाने चले हैं
ज़माने अक्सर भुलाया है उन को
ज़माने के जिन से फ़साने चले हैं
हुए बदगुमां क्यूं 'यकीन' आज इतने
हमें वो हमीं से लडाने चले हैं
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अट्ठाईस
कभी दोस्ती के सितम देखते हैं
कभी दुश्मनी के करम देखते हैं
कोई चहरा नूरे - मसर्रत से रोशन
किसी पर हज़ारों अलम देखते हैं
अगर सच कहा हम ने तुम रो पडोगे
न पूछों कि हम कितने गम देखते हैं
गरज़ उउ की देखी, मदद करना देखा
और अब टूटता हर भरम देखते हैं
ज़ुबां खोलता है यहां कौन देखें
हकीकत में कितना है दम देखते हैं
उन्हें हर सफ़र में भटकना पडा है
जो नक्शा न नक्शे - कदम देखते हैं
यूं ही ताका - झांकी तो आदत नहीं है
मगर इक नज़र कम से कम देखते हैं
थी ज़िंदादिली जिन की फ़ित्रत में यारों !
'यकीन' उन की आंखॊं को नम देखते हैं
======
हाले - दिल सब को सुनाने आ गये
खुद मज़ाक अपना उडाने आ गये
फ़ूंक दी बीमाशुदा दूकान खुद
फ़िर रपट थाने लिखाने आ गये
मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फ़िर शगुन ले के दिवाने आ गये
खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गये
तेल की लाइन से खाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गये
प्रिंसीपल जी लेडी टीचर को लिये
देखिए पिक्चर दिखाने आ गये
हांकिया ले कर पढाकू छोकरे
मास्टर जी को पढाने आ गये
घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गये
कांख में ले कर पडौसन को जनाब
मौज मेले में मनाने आ गये
बीवी सुन्दर मिल गई तो घर पे लोग
खैरियत के ही बहाने आ गये
शोख चितकबरी गज़ल ले कर 'यकीन'
तितलियों के दिल जलाने आ गये
====
आसमां के डराये हुए हैं
रोशनी के जलाये हुए हैं
दरिया, परबत, सितारे, शजर सब
किस कदर खौफ़ खाये हुए हैं
आग से है हवाओं को दहशत
हम यूं दीपक बुझाये हुए हैं
बेबसी का है आलम अगर्चे
चहरे सब तमतमाये हुए हैं
कब बदलता है परिंदे से मंज़र
बस निगाहें गडाये हुए हैं
आजकल तो 'यकीन' अपना सर हम
सरफ़िरों में खफ़ाये हुए हैं
====
अपने - अपने मोर्चे डट कर संभालें दोस्तों
इस चमन को हम उजडने से बचा लें दोस्तों
गर कोई मतभेद भी है रास्तों के दरमियां
कोई साझी राह मिल्जुल कर निकालें दोस्तों
कुछ गलतफ़हमी में उन को रूठ कर जाने न दें
बढ के आगे अपने प्यारों को मना लें दोस्तों
सल्तनत ही डोल जाये जिन के दम से ज़ुल्म की
शब्द ऎसे भी हवाओं में उछालें दोस्तों
बस्तियों को खाक कर दे बर्क इस से पेशतर
बस्तियों पे हम कोई बक्तर चढा लें दोस्तों
जो अलमबरदारी - ए- अम्नो - अमां में मिट गए
गम ' यकीन' ऎसे जियालों का भी गा लें दोस्तों
=====
बत्तीस
है कहानी ये तेरी सच को छुपाने वाली
बात कर दोस्त कोई दिल को दुखाने वाली
मार खा कर हमें इतना तो समझ में आया
उस ने क्या चाल चली हम को हराने वाली
आज दुनिया की तबाही पे है दुनिया तैयार
कैसी दुनिया है ये खुद को ही मिटाने वाली
बंदरों को तो नचा लेते है लाठी अक्सर
अब कोई शै हो मदारी को नचाने वाली
वो अदाकारा है, सुंदर है, मगर सुन बेटे
लोग कहते हैं उसे नाचने- गाने वाली
जैसे मासूम शरारत हो किसी बच्चे की
उस की हर बात थी यूं दिल को रिझाने वाली
कोई इस दर्जा करीब आया कि अब दिल को 'यकीन'
याद उस की न कभी छोड के जाने वाली
=======
रोशनी द्वार - द्वार मांगी थी
चप्पा - चप्पा बहार मांगी थी
झील, झरनों, नदी, समुंदर से
मीठे पानी की धार मांगी थी
वादियों ने दसों दिशाओं से
शांत शीतल बयार मांगी थी
सहरा आया हमारे हिस्से में
हम ने हरदम फ़ुहार मांगी थी
वक्त अक्सर मुकर गया लेकिन
हम ने राहत हज़ार मांगी थी
हम ने तो इन प्रकाश - पुंजों से
रोशनी बार - बार मांगी थी
सर पे हरदम जो अपने लटकी है
कब ये नंगी कटार मांगी थी
पैंतरें आप को मुबारक सब
हम ने कब जीत - हार मांगी थी
कोई सपना खुशी का मिल जाए
नींद यूं कुछ उधार मांगी थी
हल चला कर 'यकीन' खेतों में
पेट भरने को ज्वार मांगी थी
---
चौतीस
बात दिल खोल के आपस में अगर हो जाती
हम अंधेरों से उबर जाते सहर हो जाती
कौन हैं गैर अगर इतना समझ लेते तुम
हम तुम्हारे हैं तुम्हें ये भी खबर हो जाती
सुल्ह की फ़िर निकल आती कोई सूरत भी ज़रूर
काश इस सम्त कभी उन की नज़र हो जाती
फ़िर न करते वो कभी मुझ को दिवानों में शुमार
दिल हालत जो इधर है वो उधर हो जाती
राहतें मैं भी मंगा लेता मियां दिल्ली से
किसी मंत्री से मेरी बात अगर हो जाती
प्यार के फ़ूल नहीं होते जो गुलशन में 'यकीन'
ज़िंदगी जैसे कोई सूखा शजर हो जाती
-------
हम को लडवा दिया फ़िर कर्फ़्यू लगाने को चले
इस तरह अम्नों - अमां शहर में लाने को चले
रात को कत्ल जिन्होंने था किया हंस - हंस कर
सुबह मैयत पे वही आंसू बहाने को चले
दिल में गैरों से गिला रखना हिमाकत होगी
आंख के तारे ही जब आंख दिखाने को चले
उस ने दरिया पे नहाने को उतारे कपडे
लोग कहने लगे लो जिस्म दिखाने को चले
भैसें मदमस्त हुईं, बीन बजाने को मिली
सांप इन को भी लो सुराताल सधाने को चले
जी भरा मुझ से तो वो उस के गले जा लिपटे
मुझ से ऊबे तो 'यकीन' और ठिकाने को चले
--------
गम में शामिल हो किसी के न खुशी अपनाये
खुद को वो शख्स भरी दुनिया में तनहा पाये
कैसा तूफ़ान उठाते हैं ज़माने वाले
जब कोई शैर हकीकत का बयां कर जाये
सुनने वाले हों जहां लोग सभी पत्थर दिल
ऎसी महफ़िल में भला कोई गज़ल क्या गाये
खून के आंसू मुझे पीने की आदत हो चली
क्या मजाल अब कि कोई बूंद कहीं गिर जाये
कुछ नहीं दिखता कहीं इतना अंधेरा है 'यकीन'
रोशनी तेज़ कहीं इतनी नज़र चुंधियाये
-----
कल की यादों की कसक है कि बताये न बने
गुज़रे लम्हों की किसी तौर बुलाये न बने
जब चला जाऊंगा मैं याद बहुत आऊंगा
सामने हूं, न कहो आज सताये न बने
प्यार करने के लिए दोस्तों मुहलत है किसे
आज दो वक्त की रोटी तो कमाये न बने
बेरदीफ़ आप कहे भी तो गज़ल हो जाये
शैर कोई भी बिना काफ़िया लाये न बने
हर नये शाह ने लिखवाया है फ़िर से इतिहास
सच्चे किस्से न यूं तारीख में आये, न बने
उस से कहना तो बहुत कुछ है मगर क्या है मजाल
एक पल भी तो उसे पास बिठाये न बने
उन की है अपनी हदें मेरे मसाइल है मेरे
मुझ से रोते न बने, उन से हंसाये न बने
टूट जाऎं न कहीं देखना आपस के ' यकीन'
घर उजड जाए जो इक बार, बसाये न बने
-------
क्यूं अंधेरे हम को याद आने लगे
क्यूं ये दीपक आग बरसाने लगे
लोग कुछ लोगों को समझाने लगे
लोग कुछ लोगों को उकसाने लगे
डरने वाले सब किनारे रह गये
जो निडर थे तैर कर जाने लगे
आप के इतना कहां हूं मैं शरीफ़
आप तो बेकार घबराने लगे
हो नहीं पाया मुक्म्मल भी मकान
लोग इक - इक ईंट खिसकाने लगे
कैसे संजीदा उन्हें माने 'यकीन'
उन के सब अंदाज़ बचकाने लगे
-------
सडकें तो हैं, सकडी गली लेकिन है मेरे वास्ते
आज़ाद हूं, फ़िर हथकडी लेकिन है मेरे वास्ते
चलता हूं मैं तो सामने धरती पे रखता हूं नज़र
फ़िर हर कदम पर त्रासदी लेकिन है मेरे वास्ते
लाचारियां, मायूसियां, नाकामियां हैं चार सू
ये ज़िंदगी भी ज़िंदगी लेकिन है मेरे वास्ते
कोई किसी के वास्ते हिंदू, मुसल्मां, सिक्ख हो
हर आदमी इक आदमी लेकिन है मेरे वास्ते
तुम ने बहुत चाहा 'यकीन' अब पांव फ़ूलों पर रखूं
दुनिया फ़कत काटों भरी लेकिन है मेरे वास्ते
-------------
वक्त ज़ाए न अब किया जाये
नज़्म घर का बदल लिया जाये
हम ने क्या- क्या न सहा अब तक
अब तो मिलजुल के कुछ किया जाये
सर झुका है तो फ़िर कटेगा ज़रूर
क्यूं न सर को उठा लिया जाये
जानता हूं तुम इस से खेलोगे
फ़िर भी सोचा है दिल दे दिया जाये
मुद्दतों में मिली है तन्हाई
आज जी भर के रो लिया जाये
इतनी नज़्दीकियां भी ठीक नहीं
तुम से कुछ दूर हो लिया जाये
गाडी अब और यूं चलेगी नहीं
सोचना ये है, क्या किया जाये
ज़ुल्म दिल पर 'यकीन' और नहीं
प्यार खुद से भी अब किया जाये
-------
कोई भी आंख देखो नम नहीं हैं
गज़ल कहने का ये आलम नहीं है
मेरा इसरार बेमौसम नहीं है
तेरे होटों पे क्यूं हरदम ’नहीं’ हैं
यही अंदाज़ है उन को गवारा
तेरे लहज़े में कोई दम नहीं है
चलन जब से है ज़माने का जाना
मुझे कोई खुशी या गम नहीं है
जो होता ज़ख्म कोई भर ही जाता
किसी नासूर को मरहम नहीं है
गज़ल तो आजकल छपती है ढेरों
मगर अशआर में कुछ दम नहीं है
ज़माने आज़्मा ले जितना चाहे
मेरा भी हौसला कुछ कम नहीं है
तुम्हारे होश आखिर गुम हुए क्यूं
गज़ल का शैर है, ये बम नहीं है
’यकीन’ उस पर करूं अब और कैसे
वो अपनी बात पर कायम नहीं है
------
ये भी गज़ल का मतला है
जग में हर सू घपला है
पानी बरसा सहरा में
मौसम यूं भी बदला है
सुर्खी है अख्बार की ये
नेताजी को नज़ला है
अपने घर की खैर मना
जो चमके है, चपला है
इतिहासों में कुछ होगी
अब तो नारी अबला है
कमलेश्वर की मौज लगी
धंधे वाली कमला है
हरियाला है अपना घर
अपने घर भी गमला है
मुश्किल है अपनी भाई
अपना स्तर मझला है
सच तो ये है आज ’यकीन’
हाले- दिल पतला है
------
ज़र्रा - ज़र्रा ज़मीं का रोता है
आसमां लम्बी तान सोता है
कोई अपना नहीं हो पास अगर
आदमी क्यूं उदास होता है
उठती है इस की उंगली उस की तरफ़
अपनी कालर न कोई धोता है
आप मुजरिम को दे सके न सज़ा
इस को दीजे ये उस का पोता है
जो भी आका कहें ये दुहरा दे
दूरदर्शन है ये कि तोता है
जिस से फ़ूटे है बेल नफ़रत की
आदमी क्यूं वो बीज बोता है
क्यूं है दुश्वारियां ’यकीन’ इतनी
हर कोई ज़िंदगी को ढोता है
----
चवालिस
फ़र्ज़ की बंदिश में दिल ये प्यार से मज़्बूर है
या कोई पंछी कफ़स में ज़िंदगी से दूर है
मन उधर ले जाए है तो ज़हन खीचें है इधर
तन - मुसाफ़िर इसलिए हर आस्तां से दूर है
करना पडता और कुछ, दिल की रज़ा है और कुछ
हर तमन्ना किस कदर हालात से मज़्बूर है
कुत्ते की दुम की तरह टेढा रहा उस का मिज़ाज
तेरी हर कोशिश दिवाने देख थक कर चूर है
अपने हाथों खुद अभी पर बांध कर छोडा परिन्द
अब ये पूछे हो उसे, क्यूं उडने से माज़ूर है
अब तुम्हे क्या हो गया, तुम ने अभी था ये कहा
आप की तो शर्त हर मंज़ूर है, मंज़ूर है
अय ’यकीन’ अब तेरा चर्चा है सारे शहर में
अब तेरा दीवानापन चारों तरफ़ मशहूर है
-------
मुझे नास्तिक जो बताते
चलो आदमी तो बताते
उठाते हैं कुरआनो- गीता
मगर झूठ सच को बताते
बचाते है दामन वो अपना
खतावार मुझ को बताते
जो टकराये अंधे से कोई
सभी अंधा उस को बताते
किशन ने जो की उस को लीला
मगर चोर मुझ को बताते
वो अपनी वफ़ा को टटोले
हमें बेवफ़ा जो बताते
मै मेहमान कहता हूं उन को
वो मेहमान मुझ को बताते
"यकीन" अपने दिल पर नहीं
फ़रेबी जहां को बताते
--------
ये कहना है, वो कहना है, यूं नैन बिछाये रस्ते में
मुंह सूख गया, लब हिल न सके जब सामने आये रस्ते में
वो ख्वाबों में मिल जाते थे, मैं नींद में खुश रह लेता था
रह - रह के ख्याल आता है यही, हम क्यूं टकराये रस्ते में
मुद्दत से तमन्न थी जिन की वो आज मिले, क्या खाक मिले
कुछ उन की पूछ सके ही न हम अपनी कह पाये रस्ते में
वो जब भी राह में मिल जाये, दिल ऎसे धक से रह जाये
जैसे मयकश मय पी - पी कर उठ - उठ गिर जाये रस्ते में
आहट पे ज़रा - सी मै ही नहीं दर खोल के बाहर निकला हूं
मेरी ही तरह वो भी अक्सर घर छोड के आये रस्ते में
क्या मंज़िल मिल पायेगी तब क्या पास रहेगा फ़िर अपने
रहबर हे रूप बदल कर जब रहज़न बन जाये रस्ते में
हम उन का बुलावा पाते ही बेताब हुये घर से निकले
जम गये कदम दर पर जा कर, गो रुक भी न पाये रस्ते में
सुनते थे "यकीन" ऎसा अक्सर, दिलकश है बडी मुस्कान उन की
माथे से पसीना चूने लगा जब वो मुस्काये रस्ते में
पचास
सो न जाना कि मेरी बात अभी बाकी है
अस्ल बातों की शुरूआत अभी बाकी है
तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाकी है
खुश्बू फ़ैली है हवाओं में कहां सोंधी - सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाकी है
घिर के छाई जो घटा शाम का धोका तो हुआ
फ़िर लगा शाम की सौगात अभी बाकी है
खेलते खूब हो, चालो से तुम्हारी हम ने
धोके खाये हैं मगर मात अभी बाकी है
जो नुमायां है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाकी है
रुक नहीं जाना "यकीन" आप की मंज़िल ये नहीं
मंज़िलों से तो मुलाकात अभी बाकी है
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sabhi gazalen behtareen!
जवाब देंहटाएं"budbudaya shahar me aakar fakeer
kyon chala aaya main jangal chhodkar"
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"galiyon me athkheli karta andhiyara
chaurahon par jagmag karta mera shahar"
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"dhoondhen koi chingari
thandi raakh ke ghere me"
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"ujad gayee ham gareebon ki basti
nagar khoobsurat banane chale hain"
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"gazal to aajkal chhapti hai dheron
magar ashaar me kuchh dam nahi hai"
gazab ke sher hain , kuchh ko hi dekh saka hoon .
ye gazalen vistrit aayam aur lekhan ki sarthakta ka swayam aabhas karati hain.
एक-एक करके दीं होती...ज़्यादा बेहतर रहता...
जवाब देंहटाएंएक मुकम्मिल किताब पढ़ने का मज़ा आया...
مسلمانو !٠
जवाब देंहटाएंمُسلم سے مومن بنو٠
اسلام سے نجات کی ضرورت ٠
دیکھو بلاگ - - - ٠
امّی کا دیوان
قران حرفِ غلط