मुझे नास्तिक जो बताते
चलो आदमी तो बताते
उठाते हैं कुरआनो- गीता
मगर झूठ सच को बताते
बचाते है दामन वो अपना
खतावार मुझ को बताते
जो टकराये अंधे से कोई
सभी अंधा उस को बताते
किशन ने जो की उस को लीला
मगर चोर मुझ को बताते
वो अपनी वफ़ा को टटोले
हमें बेवफ़ा जो बताते
मै मेहमान कहता हूं उन को
वो मेहमान मुझ को बताते
"यकीन" अपने दिल पर नहीं
फ़रेबी जहां को बताते
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उनचास
ये कहना है, वो कहना है, यूं नैन बिछाये रस्ते में
मुंह सूख गया, लब हिल न सके जब सामने आये रस्ते में
वो ख्वाबों में मिल जाते थे, मैं नींद में खुश रह लेता था
रह - रह के ख्याल आता है यही, हम क्यूं टकराये रस्ते में
मुद्दत से तमन्न थी जिन की वो आज मिले, क्या खाक मिले
कुछ उन की पूछ सके ही न हम अपनी कह पाये रस्ते में
वो जब भी राह में मिल जाये, दिल ऎसे धक से रह जाये
जैसे मयकश मय पी - पी कर उठ - उठ गिर जाये रस्ते में
आहट पे ज़रा - सी मै ही नहीं दर खोल के बाहर निकला हूं
मेरी ही तरह वो भी अक्सर घर छोड के आये रस्ते में
क्या मंज़िल मिल पायेगी तब क्या पास रहेगा फ़िर अपने
रहबर हे रूप बदल कर जब रहज़न बन जाये रस्ते में
हम उन का बुलावा पाते ही बेताब हुये घर से निकले
जम गये कदम दर पर जा कर, गो रुक भी न पाये रस्ते में
सुनते थे "यकीन" ऎसा अक्सर, दिलकश है बडी मुस्कान उन की
माथे से पसीना चूने लगा जब वो मुस्काये रस्ते में
पचास
सो न जाना कि मेरी बात अभी बाकी है
अस्ल बातों की शुरूआत अभी बाकी है
तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाकी है
खुश्बू फ़ैली है हवाओं में कहां सोंधी - सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाकी है
घिर के छाई जो घटा शाम का धोका तो हुआ
फ़िर लगा शाम की सौगात अभी बाकी है
खेलते खूब हो, चालो से तुम्हारी हम ने
धोके खाये हैं मगर मात अभी बाकी है
जो नुमायां है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाकी है
रुक नहीं जाना "यकीन" आप की मंज़िल ये नहीं
मंज़िलों से तो मुलाकात अभी बाकी है
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