मंगलवार, 17 अगस्त 2010

तेरह


बाजुओं में न खिवैया के है दम आंखों में
फ़िर भी पतवार लिये बैठा है वो हाथों में


हौसला उन का ज़रा तोड के दिखलाए कोई
वो दिवाने जो चले हैं बाहें लिये बाहों में


बात करने की शुरुआत करें हम यारों
बात,बातों से ही निकलेगी कोई बातों में


तेज आंधी में बहुत दूर अभी चलना है
बाद सहरा के है मंज़िल भी इन्ही राहों में


रोज़ वादे किया करते हैं वो प्यारे-प्यारे
कोई अंज़ाम को पहुंचा न गये सालों में


गिले-शिकवों का हिसाब और कभी कर लेना
वर्ना चुक जायेगी ये उम्र बही-खातों में


पिछले सालों में हुआ ज़र्दरू पत्ता-पत्ता
डाली-डाली पे उगे खार गुलिस्तानों में


माना हालात मुखालिफ़ है "यकीन" आज मगर
तुझ को चलना भी है मछली की तरह धारों में
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