गुरुवार, 12 अगस्त 2010

दस



महनत करना ज़िम्मा तेरा, ऎसा क्यूं
ऎशपरस्ती उस का हिस्सा, ऎसा क्यूं

बरसों पहले देश का नक्शा बदला था
अपना घर वैसे का वैसा, ऎसा क्यूं

मेरे घर में खाली पीपे मुंह फ़ाडें
उस घर की झूठन में हलवा, ऎसा क्यूं

हंगामा बरपा है सब अखबारों में
सारी बस्ती में सन्नाटा, ऎसा क्यूं

आजादी के बाद लहू बरसा, हे राम
गांधी के सपने में हिंसा, ऎसा क्यूं

इक जा हरदम एक-सा मौसम और "यकीन"
इक जा गर्मी, इक जा जाडा, ऎसा क्यूं
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